Raksha Bandhan Film Review: भाई-बहन की बॉन्डिंग पर केंद्रित इस फिल्म को मास ऑडियंस को ध्यान में ...
रक्षाबंधन के मौके पर भाई-बहनों के लिए यह फिल्म एक ट्रीट हो सकती है. आप गिफ्ट के रूप में बहन को यह फिल्म दिखाने ले जा सकते हैं. राइटर व डायरेक्टर की कोशिश के लिए भी इस फिल्म को मौका दिया जा सकता है. हां, अक्षय कुमार की बहनों संग बॉन्डिंग स्क्रीन पर फ्रेश सी है, जो दर्शकों के लिए ट्रीट हो सकती है. वन टाइम वॉच फिल्म है, इस लॉन्ग वीकेंड में थिएटर की ओर रुख कर सकते हैं. पूरी फिल्म में अक्षय कुमार लाउड नजर आए हैं. कई जगहों पर उनकी कॉमिक सेंस आपको गुदगुदाती है लेकिन ज्यादातर आपके हाथ निराशा लगती है. अक्षय की बहनों ने कमाल का काम किया है. बड़ी बहन बनीं सादिया खातिब इस फिल्म का टर्निंग पॉइंट रही हैं. फिल्म में उनकी परफॉर्मेंस सहज रही हैं. वहीं बाकी की तीन बहनें दीपिका खन्ना, सहेजमीन कौर, स्मृति श्रीकांत ने अपने किरदारों का सुर पकड़ा है और अपना किरदार बखूबी निभाया है. भूमि पेडनेकर जब-जब स्क्रीन पर आती हैं, अपनी छाप छोड़ जाती हैं. चांदनी चौक की तंग गलियां और दिल्ली के फ्लेवर को सिनेमैटोग्राफर केयू मोहनन ने बखूबी कैमरे पर कैद किया है. मिडिल क्लास फैमिली का घर सिल्वर स्क्रीन पर साफ नजर आता है. फिल्म की एडिटिंग हेमल कोठारी और प्रकाश चंद्र साहू की रही, जिन्होंने अपना काम डिसेंट किया है. आर्ट डिजाइनर रचना मंडल अपने सेट के जरिए दिल्ली को दिखाने में काफी हद तक कामयाब रही हैं. फिल्म का म्यूजिक दिया है हिमेश रेशमिया ने, हिमेश और अक्षय कुमार की जुगलबंदी म्यूजिक के मामले में कमाल की रही है. फिल्मों के बीच गानों का सिलेक्शन परफेक्ट रहा है, कहानी के इमोशन गानों के जरिए परफेक्टली बयां होते नजर आते हैं. दिल्ली के चांदनी चौक में लाला केदारनाथ (अक्षय कुमार) गोलगप्पों व चाट की दुकान चलाता है. इस दुकान को लेकर पूरे शहर में चर्चा है कि प्रेगनेंट महिलाएं यहां के गोलगप्पे खाने के बाद लड़के को जन्म देती हैं. लाला की चार बहने हैं, जिनकी शादी की जिम्मेदारी उसके कंधों पर है. दरअसल लाला की मरती मां ने वचन दिया था कि वो चार बहनों की शादी कराने के बाद ही अपनी शादी करेगा. मिडिल क्लास फैमिली में चार बहनों की शादी और उनके दहेज की टेंशन लाला और उनकी गर्लफ्रेंड सपना (भूमि पेडनेकर) संग रिश्तों में दरार ला देती है. इसी बीच लाला की सबसे बड़ी बहन गायत्री (सादिया खातीब) की शादी पक्की हो जाती है. अपनी बहन को खूब सारा दहेज देकर उसे शान से विदा करता है. इस बीच लाला को बाकी तीन बहनों की शादी की चिंता सताने लगती है. क्या वो बाकी बहनों की शादी करवा कर अपनी प्रेमिका से शादी कर पाता है. ये जानने के लिए आपको थिएटर जाना होगा. फिल्म के डायरेक्टर आनंद एल राय अपनी फिल्मों में वुमन सेंट्रिक किरदारों के लिए पहचाने जाते रहे हैं. तनु वेड्स मनु की तनु हो या रांझणा की जोया या फिर गुडलक जेरी की जेरी, उनकी फिल्मों में महिलाएं हमेशा से स्ट्रॉन्ग हेडेड रही हैं. लेकिन इस फिल्म में फीमेल किरदारों का प्रोजेक्शन उनकी स्टाइल से विपरीत नजर आया है. यहां न तो बहनों का इंपैक्ट पड़ता है और न ही प्रेमिका भूमि कुछ मैजिक क्रिएट कर पाती हैं. फिल्म के पूरे फर्स्ट हाफ का प्लॉट एक रिग्रेसिव सोच को मद्देनजर रखते हुए तैयार किया गया था, जहां अक्षय दहेज को जस्टिफाई करते हैं, सीटी मारने वाले लड़के से शादी करने की बात कहकर, खुद ही अपनी बहनों को डबल डेकर, अमावश्य की रात जैसे शब्दों का संबोधन कर बॉडी और कॉम्पलेक्स शेमिंग जैसी चीजों को बढ़ावा देते हैं. दर्शकों के मन में बिल्डअप किए गए इन्हीं सोच का तोड़ सेकेंड हाफ में होता है, जिसमें डायरेक्टर व राइटर कनिका ढिल्लन बुरी तरह से फेल नजर आते हैं. यही वजह से सेकेंड हाफ इमोशनल होने के बावजूद इंपैक्ट जगा नहीं पाता है और जो दहेज को लेकर मेसेज देने की कोशिश की है, वो कहीं न कहीं फुस्स होती नजर आती है. कई बार कहानी इतनी ज्यादा मेलोड्रामैटिक लगती है कि आप इसकी तुलना डेलिसोप से करने में मजबूर हो जाते हैं. भाई का किडनी बेचकर दहेज के लिए पैसा इक्ट्ठा करना थोड़ा ओवर लगता है. हालांकि हमारे समाज में दहेज का टॉपिक इतना सेंसेटिव और रिलेटबल है कि इससे दर्शक खुद को रिलेट जरूर कर पाएंगे. कहानी एक अच्छे मकसद से बनाई गई है लेकिन ट्रीटमेंट के मामले में थोड़ी लाउड और बिखरी हुई नजर आती है. स्क्रीन पर अक्षय ही अक्षय का होना, इरीटेट करता है. फिल्म में बहनों की कास्टिंग इसका मजबूत पक्ष है. रक्षाबंधन के खास मौके पर खिलाड़ी कुमार अपनी स्क्रीन इमेज से विपरित भाई-बहन पर आधारित फिल्म की सौगात लेकर आए हैं. भाई-बहन की बॉन्डिंग पर केंद्रित इस फिल्म को मास ऑडियंस को ध्यान में रखते हुए कॉमेडी, मेलोड्रामा, इमोशन का भरपूर तड़का लगाया गया है.
Raksha Bandhan Review: అక్షయ్ కుమార్, ఆనంద్ రాయ్ కాంబినేషన్లో వచ్చిన ప్రతీ సినిమా ...
👉 Emotion = 5/5 👉 Performance = 5/5 Family Entertainer with a social message ⭐️⭐️⭐️.5/5 (3.5/5) Review by @iamshivankarora @akshaykumar @bhumipednekar @aanandlrai @cypplOfficial @ZEE5India @ZeeStudios_ @CapeOfGoodFilm #RakshaBandhan #Rakhi pic.twitter.com/VHPlJW2hKK August 10, 2022 👉 Music = 4/5 👉 Direction = 4/5 👉 Screenplay = 4/5 👉Story = 5/5
आनंद एल. राय ने फिल्म 'रक्षा बंधन' के जरिए समाज की कुरीतियों पर से पर्दा उठाने की कोशिश ...
Channel No. 658 Channel No. 307 Channel No. 320 Channel No. 524
Raksha Bandhan movie review: Do the filmmakers truly believe that such low-rent family dramas, with their uneasy mix of humour and crassness, is the way out ...
Do, by all means, show us the horrors of dowry, and the other evils associated with this never-ending tradition of shaadi-vaadi, but how about also being aware of the responsibilty of an artist with such a large catchment? You start with a girl happy to go it on her own, insteading of hurriedly, almost aplogetically ending with it, and see how the world changes. Here too, once the three-fourth mark is safely over, after the loss of a young girl and, wait for it, a kidney, the film suddenly becomes a beacon for girls to stand on their own feet, and fight the evils of dowry. The ladies aren’t too bad either, whenever they get a chance to get in a word edgewise. Lalaji negotiating the ‘burden’ of his ‘unbyaahi behens’ on the one hand, and on the other, trying to balance his filial duties with his own desires. Within seconds, Lalaji waltzes into his house, ensconced in a narrow gali, labelling his unmarried sisters by their physical characteristics: one is overweight, the other is dark, the third is a hoyden; only the oldest, the ‘achcha bacchcha’ (good girl) is naturally the only one who is fair and demure.
RakshaBandhan review: Akshay Kumar's films delivers a strong message on dowry without trivialising the issue while managing to be an entertaining watch.
Consistency in the narrative is one of the biggest strengths of the film. While many think it's a thing that's more prevalent in the rural sectors and the cities have advanced on this front, it's just not the case. It's loaded with humour in the first half and there are some genuinely funny and heart-warming scenes including constant nudging from the sisters, teasing their only brother, Sapna's desperate attempts to lure Lala and so on. And that's the big task at hand for the sisters, as described by matchmaker Shanu (Seema Pahwa), are a mixed variety. With his latest release, Raksha Bandhan, Akshay only proves that if a film has its heart in the right place, it will connect with the audiences. This is not the first time the actor has done a film that's relevant and has a strong social message — Raksha Bandhan touches upon the issue of dowry system in India. But it's the way director Aanand L Rai chooses to narrate the story, weaving together the most delicate threads to deliver a strong message, that does the trick.
Raksha Bandhan Twitter Review: बॉलीवुड के सुपरस्टार अक्षय कुमार (Akshay Kumar) और निर्देशक आनंद एल रॉय (Anand ...
Raksha Bandhan Movie review in Hindi: भाई बहन के असीम प्रेम के प्रतीक पर्व रक्षा बंधन पर अक्षय कुमार ...
Raksha Bandhan can be funny and infuriating in the same shot, but, then again, so are families.
Bhumi's stubborn Sapna may not be her finest work to date—and that's only because she had set the bar high early on—but, as a pair, the duo is pleasant in their own oddball-ish fashion. The short answer is 'No!' All that human connection and familial ties aside, it gets overbearing in the middle to see everyone in the movie do one of two things: hurl insults or sob. In come the emotions, theirs and yours, and the customary festive release starts to grow on you.
Raksha Bandhan released on August 11 and reviews have been dropping in for the film already. Fans have called it the best performance of Akshay Kumar in his ...
What follows is Lala's relentless efforts of getting his sisters married while upholding his family values. — S I D D H A N T (@siddhanta_kumar)— S I D D H A N T (@siddhanta_kumar) Yesss this one is his career's best film also best PERFORMANCE. They called it the best film of his career. — S I D D H A N T (@siddhanta_kumar)— S I D D H A N T (@siddhanta_kumar) Yesss this one is his career's best film also best PERFORMANCE. Netizens have lauded Akshay Kumar's performance in the film especially. We are talking about Akshay Kumar's film which released in the theatres on August 11.
फिर जब पता चला कि उनकी अगली रिलीज़ आनंद एल राय की फिल्म 'रक्षा बंधन' होगी, तब कहा गया कि वो ...
‘रक्षा बंधन’ उस सोच पर चोट करना चाहती है जिसके मुताबिक दहेज देने में भाई या पिता गर्व महसूस करता है. ऐसा मानता है कि बहन या बेटी के लिए कुछ कर रहा हूं. एक हद तक अपनी कोशिश में कामयाब भी होती है. लेकिन सिर्फ एक हद तक, क्योंकि एक पॉइंट के बाद फिल्म की लिखाई अपनी मैसेजिंग में कंफ्यूज़ होती दिखती है. एक ट्रैक से दूसरे ट्रैक पर झट से चली जाती है. ऐसा शायद फिल्म की सीमित लेंथ की वजह से किया गया हो. जैसे पहले सीन में ही लाला अपनी सांवली बहन को ताना मारता है कि अंधेरे में डरा देगी किसी को. एक बहन का वजन ज़्यादा है तो उसके कपड़ों पर कमेंट करता है. ऐसे लोग और ऐसी बातें हमारे चारों तरफ होती हैं. मसला ये है कि ऐसे किरदारों से आप डील कैसे करते हैं. लाला बुरा आदमी नहीं. बस उसके सिर पर भूत सवार है, कि कैसे भी अपनी बहनों की शादी करनी है. शायद ऐसा ही जुनून फिल्म पर भी सवार था. चारों बहनों और उनकी दुनिया को सिर्फ शादी के इर्द-गिर्द समेट कर रख देना. यही वजह है कि हमें कभी पता नहीं चलता कि उनकी हॉबी क्या थी. वो अपने करियर में क्या बनना चाहती थीं. उनके घर में सिर्फ और सिर्फ शादी की ही चर्चा सुनाई पड़ती है. ‘रक्षा बंधन’ के प्रमोशन के दौरान ये बात आई थी कि ये अक्षय कुमार के करियर की सबसे छोटी फिल्म है. मेरे विचार में किसी और फिल्म को इस उपाधि का गौरव बख्शा जा सकता था. एक घंटे 50 मिनट की लेंथ के चक्कर में फिल्म बहुत जगह भागती है. उसे थोड़ा डटना चाहिए था, अपने किरदारों और अपनी ऑडियंस, दोनों के लिए. इसी रफ्तार की वजह से ‘रक्षा बंधन’ के पास याद रखे जाने के रूप में सिर्फ कुछ पल रह जाते हैं. फिल्म के कुछ इमोशनल सीन अपना काम करते हैं. लेकिन ये बस कुछ बनकर रह जाते हैं. बाकी बची फिल्म इन हिस्सों के साथ इंसाफ नहीं कर पाती. काफी समय बाद अक्षय को फिज़िकल कॉमेडी करते देखा. प्रियदर्शन की फिल्में देखी होंगी तो बताने की ज़रूरत नहीं कि उनकी कॉमेडी टाइमिंग कैसी है. यहां भी आपको वो दिखेगा. उनके हिस्से कुछ अच्छे इमोशनल सीन्स आए, जहां वो अपना काम कर देते हैं. उनकी बहनों का रोल निभाया है सादिया खतीब, सहजमीन कौर, दीपिका खन्ना और स्मृति श्रीकांत ने. दुर्भाग्यवश, उनके किरदारों को फिल्म में ठीक से नहीं यूज़ किया गया. ये एक बड़ी शिकायत है. कुछ ऐसा ही भूमि पेडणेकर के साथ भी है, जिन्होंने फिल्म में सपना नाम का किरदार निभाया. बेसिकली, सपना केदारनाथ की लव इंट्रेस्ट है. फिल्म की लेंथ बढ़ाकर इन किरदारों के आगे-पीछे की कहानी और ढंग से दिखाई जा सकती थी. आनंद एल राय की फिल्मों के किरदार पूर्ण नहीं होते. न ही टिपिकल हीरोनुमा होते हैं. वो अपनी खामियां अपने साथ लेकर चलते हैं. अक्षय कुमार का किरदार लाला भी ऐसा ही है. अपनी बहनों का हर मुमकिन तरीके से ध्यान रखने की कोशिश करेगा. कम-से-कम जैसा उसे सोसाइटी ने सिखाया है. बस शादी वाले पक्ष पर उसे कुछ सुनाई-दिखाई नहीं पड़ता. फिल्म उसकी खामियों को उजागर रूप से नहीं दिखाना चाहती, जितना वो उसके बलिदानों पर बात करती है. औरतों के लिए वोकल होने वाली ‘रक्षा बंधन’ अपनी सुई उस विचारधारा पर लाकर खड़ी कर देती है जहां किसी आदमी से अपनी बहनों के लिए बलिदान देना अपेक्षित हो. अपनी खुशियों को उनके लिए अग्नि करना अपेक्षित हो. फिल्म की कहानी सेट है चांदनी चौक में. ये चांदनी चौक करण जौहर के यूनिवर्स से नहीं आता, जहां की सड़कें खाली रहती हों. इसी चांदनी चौक में एक चाट की दुकान है. इसका मालिक है केदारनाथ, जिसे सब लाला भी बुलाते हैं. लाला की दुकान की खासियत हैं गोलगप्पे. लेकिन उनसे भी पहले आपकी नज़र पड़ती है उसकी दुकान की टैगलाइन पर– चाट खाइए, बेटा पाइए. गोलगप्पे को देखकर जितना जी ललचाया था, वो यह पढ़कर घिना जाता है. खैर, लाला का काम वगैरह सब सही चल रहा है. उनके जीवन में कहीं समस्या है तो ये कि घर में चार बहनें रखी हैं. रहती नहीं हैं, रखी हैं. उन चारों की किसी भी तरह शादी करवानी है. लाला उनकी शादी करवा पाता है या नहीं, उस दौरान खुद में कुछ बदलाव महसूस करता है या नहीं. यही पूरी फिल्म की मोटा-माटी कहानी है. जब ‘रक्षा बंधन’ का ट्रेलर आया था तब जनता कन्फ्यूज़्ड थी. ट्रेलर को देखकर लग रहा था कि फिल्म इमोशन के लेवल पर खरी उतरेगी. फिर उसमें ऐसे डायलॉग सुने कि चार महीने में बेटी को निपटा दूंगा. यानी उसकी शादी करवा दूंगा. कहानी का हीरो अपनी बहनों के लिए दहेज इकट्ठा करने में जुटा हुआ है. ऐसे में लगा कि बेटियां पराया धन होती हैं वाला घिसा-पिटा नैरेटिव क्यों धकेल रहे हैं. इन सब बातों के बीच एक बात पर भरोसा था, फिल्म के लेखक कनिका ढिल्लों और हिमांशु शर्मा पर. ये दोनों सेंसिबल लोग हैं. बेटियां बोझ हैं वाली कहानी तो नहीं ही दिखाएंगे. हिमांशु और कनिका ने लाला और उसके आसपास के किरदारों के ज़रिए प्रॉब्लमैटिक या दकियानूसी चीज़ों को एक्स्ट्रीम पर ले जाने की कोशिश की. अक्षय कुमार. वो एक्टर जिनके लिए कहा जाता है कि साल में चार फिल्में करते हैं. उनकी पिछली दो फिल्में ‘बच्चन पांडे’ और ‘सम्राट पृथ्वीराज’ नहीं चली. फिर जब पता चला कि उनकी अगली रिलीज़ आनंद एल राय की फिल्म ‘रक्षा बंधन’ होगी, तब कहा गया कि वो फिर से फीलिंग्स वाले सिनेमा की ओर लौट रहे हैं. ‘रक्षा बंधन’ अब रिलीज़ हो चुकी है. इमोशन, कहानी, एक्टिंग आदि जैसे पॉइंट्स पर फिल्म कितनी मज़बूत है, आज के रिव्यू में उसी पर बात करेंगे.